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अजी जीने की आदत तो समझ में आयी , मगर ये समझ में नहीं आया की ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये क्यों लिख दिया इस गाने में ? वैसे मैं कोई बुराई नहीं कर रहा हूँ गाने की , मेरा मतलब है कि क्या हम लोग इतने गैर व गुजरे हैं , कि हम लोगों को ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये सुनना पड़ेगा , वो भी ऐसे देश में जहाँ की मिट्टी-मिट्टी में हमारे आदरणीय पूर्वजों ने जान लगा दी व हम लोगों को स्वतंत्र जिंदगी सम्मान सहित भेंट की - चलिए आगे बात करते हैं कि मैंने इस विषय पर पोस्ट लिखना उचित क्यों समझा -
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'अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' आदतें ये आदतें - देखा जाए तो ये आदतें ही हम सबकों अलग-अलग करती हैं , सोचिये अगर ये आदतें हम सबकी एक जैसी होती तो सिवाय रंग और रूप के हम सब एक समान से होते , तो क्यों ये आदतें ऐसी पड़ जाती हैं कि हम एक जैसे होते हुए भी अनेक हो जाते हैं ? ये प्रश्न मेरे अन्दर तब उपजा जब हमारे देश के युवाओं को बड़ी निष्ठा व प्रेम के साथ इस गीत का अनुसरण करते देखा - रोड पे चलते वक़्त एक छोटा सा बच्चा टायर नचाते हुए यही गा रहा था कि ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' तो आज के प्रश्न इसी विषय पर -
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प्रश्न - हम युवा जब कहीं जाते है , तो अकेले नहीं कम से कम २ या ३ लोगों को लेके क्यों ? इसलिए क्योंकि अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ?
उत्तर - इस सवाल का मतलब ये न निकाल लीजियेगा , कि हम ये चाहते हैं कि आप अकेले रहें या अनेकों में , और हमारे चाहने से भी कुछ नहीं होगा , होगा तभी जब आप चाहेंगे - मेरे कहने का मतलब ये है कि आजकल जब मै सड़कों पर निकलता हूँ , तो बड़ी तादात में देखने को क्या मिलता है कि , हमारे युवाजन , विद्यार्थी एकांत में विद्याध्यन करने के वजाए गली चौराहे पर किसी विषय पर गहन वार्तालाप करते व मोहनी विद्या पर ध्यान लगाते नज़र आते हैं , और या फिर किसी संग्राम या युद्ध के लिए रणनीति का संचार करते , क्यों ? इसका जवाब ठीक से तो नहीं कह सकता , इसलिए क्योंकि इन तीन क्रियाओं का जवाब तो उनके अन्दर चल रही सोंच ही दे सकती है , क्योंकि मान लीजिये कि कोई नेता व अभिनेता कहीं भी जाता है तो उसे सुरक्षा की ज़रुरत होती ही है , क्योंकि वो कई लोगों की नज़र में होते है ( मेरा मतलब , भ्रष्ट आतंक नीतियों ) तो उनकों तो सुरक्षा के लिए २ या ३ साथी की ज़रुरत होती ही है , लेकिन हमारे युवाजन , उन्होंने तो किसी का गलत नहीं किया , फिर क्यों उनकों चलने के लिए २ या ३ साथी की ज़रुरत पड़ती है एक और भी ध्यान देने वाली बात है कि आप जबतक अपने ऊपर विश्वास ही नहीं करेंगे , तब तक कैसे काम चलेगा , क्या पता आपके साथ चलने वाला आदमी रास्ता ही न जानता हो , और आप गलत मार्ग पकड़ लें , बहुत से लोग तो हमारी फिल्मों पर ही दोष मढ़ देते है , ये नहीं देखते की जो वो दिखा रहे है उनसे हमको अच्छी चीजे ही सीखनी है , और फ़ालतू चीजों से मतलब रखना भी नहीं चाहिए , क्योंकि हम लोग कोई फ़ालतू थोड़े ही न है , इसलिए क्योंकि हमें आगे बढ़ना है , क्योंकि हमें कुछ करना है !
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इस पोस्ट के प्रश्न के आधार पर एक छोटी सी रचना -
|| ऐसे शब्द हम क्यों लिख बोलें कि हम ही पीछे रह जाएं ||
|| आत्मविश्वास न टूटे कभी आओ अभी से एक ऐसा युग बनाएं ||
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इस पोस्ट के आधार पर ये गीत , देखिएगा ज़रूर , फ़िल्म कलियुग - बोल - अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ---
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मित्रों व पाठकों आपकी मूल्यवान टिप्पणियों का सदः ही स्वागत है , टिप्पणी ज़रूर करें व ज़िन्दगी से सम्बंधित कोई भी प्रश्न आप बेझिझक पूंछे , व कोई सुझाव हो तो अवश्य दें , धन्यवाद !
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अजी जीने की आदत तो समझ में आयी , मगर ये समझ में नहीं आया की ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये क्यों लिख दिया इस गाने में ? वैसे मैं कोई बुराई नहीं कर रहा हूँ गाने की , मेरा मतलब है कि क्या हम लोग इतने गैर व गुजरे हैं , कि हम लोगों को ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये सुनना पड़ेगा , वो भी ऐसे देश में जहाँ की मिट्टी-मिट्टी में हमारे आदरणीय पूर्वजों ने जान लगा दी व हम लोगों को स्वतंत्र जिंदगी सम्मान सहित भेंट की - चलिए आगे बात करते हैं कि मैंने इस विषय पर पोस्ट लिखना उचित क्यों समझा -
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'अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' आदतें ये आदतें - देखा जाए तो ये आदतें ही हम सबकों अलग-अलग करती हैं , सोचिये अगर ये आदतें हम सबकी एक जैसी होती तो सिवाय रंग और रूप के हम सब एक समान से होते , तो क्यों ये आदतें ऐसी पड़ जाती हैं कि हम एक जैसे होते हुए भी अनेक हो जाते हैं ? ये प्रश्न मेरे अन्दर तब उपजा जब हमारे देश के युवाओं को बड़ी निष्ठा व प्रेम के साथ इस गीत का अनुसरण करते देखा - रोड पे चलते वक़्त एक छोटा सा बच्चा टायर नचाते हुए यही गा रहा था कि ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' तो आज के प्रश्न इसी विषय पर -
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प्रश्न - हम युवा जब कहीं जाते है , तो अकेले नहीं कम से कम २ या ३ लोगों को लेके क्यों ? इसलिए क्योंकि अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ?
उत्तर - इस सवाल का मतलब ये न निकाल लीजियेगा , कि हम ये चाहते हैं कि आप अकेले रहें या अनेकों में , और हमारे चाहने से भी कुछ नहीं होगा , होगा तभी जब आप चाहेंगे - मेरे कहने का मतलब ये है कि आजकल जब मै सड़कों पर निकलता हूँ , तो बड़ी तादात में देखने को क्या मिलता है कि , हमारे युवाजन , विद्यार्थी एकांत में विद्याध्यन करने के वजाए गली चौराहे पर किसी विषय पर गहन वार्तालाप करते व मोहनी विद्या पर ध्यान लगाते नज़र आते हैं , और या फिर किसी संग्राम या युद्ध के लिए रणनीति का संचार करते , क्यों ? इसका जवाब ठीक से तो नहीं कह सकता , इसलिए क्योंकि इन तीन क्रियाओं का जवाब तो उनके अन्दर चल रही सोंच ही दे सकती है , क्योंकि मान लीजिये कि कोई नेता व अभिनेता कहीं भी जाता है तो उसे सुरक्षा की ज़रुरत होती ही है , क्योंकि वो कई लोगों की नज़र में होते है ( मेरा मतलब , भ्रष्ट आतंक नीतियों ) तो उनकों तो सुरक्षा के लिए २ या ३ साथी की ज़रुरत होती ही है , लेकिन हमारे युवाजन , उन्होंने तो किसी का गलत नहीं किया , फिर क्यों उनकों चलने के लिए २ या ३ साथी की ज़रुरत पड़ती है एक और भी ध्यान देने वाली बात है कि आप जबतक अपने ऊपर विश्वास ही नहीं करेंगे , तब तक कैसे काम चलेगा , क्या पता आपके साथ चलने वाला आदमी रास्ता ही न जानता हो , और आप गलत मार्ग पकड़ लें , बहुत से लोग तो हमारी फिल्मों पर ही दोष मढ़ देते है , ये नहीं देखते की जो वो दिखा रहे है उनसे हमको अच्छी चीजे ही सीखनी है , और फ़ालतू चीजों से मतलब रखना भी नहीं चाहिए , क्योंकि हम लोग कोई फ़ालतू थोड़े ही न है , इसलिए क्योंकि हमें आगे बढ़ना है , क्योंकि हमें कुछ करना है !
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इस पोस्ट के प्रश्न के आधार पर एक छोटी सी रचना -
|| ऐसे शब्द हम क्यों लिख बोलें कि हम ही पीछे रह जाएं ||
|| आत्मविश्वास न टूटे कभी आओ अभी से एक ऐसा युग बनाएं ||
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इस पोस्ट के आधार पर ये गीत , देखिएगा ज़रूर , फ़िल्म कलियुग - बोल - अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ---
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मित्रों व पाठकों आपकी मूल्यवान टिप्पणियों का सदः ही स्वागत है , टिप्पणी ज़रूर करें व ज़िन्दगी से सम्बंधित कोई भी प्रश्न आप बेझिझक पूंछे , व कोई सुझाव हो तो अवश्य दें , धन्यवाद !
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अलग अलग आदतें होने में कोई हर्ज नहीं ... हाँ किसी आदत से दुसरे को बुरा लगे ये गलत है ...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा दिगंबर भाई , मगर जैसे नाखून काटना गलत आदत है , और इस आदत से किसी और को बुरा नहीं लगेगा , बल्कि खुद का ही तो नुक्सान है , उसी प्रकार ऐसी तमाम आदतें है जिनकों हम बिला वजह ही पाल लेते है ! और यही इस पोस्ट की वजह है , ( मतलब कोई एक वजह नहीं है ! ) , धन्यवाद व सदः ही स्वागत है !
Deleteएक अच्छा विषय :)
ReplyDeleteसर धन्यवाद व सद: ही स्वागत हैं !
Deleteअगर आदत अच्छी हो या उससे स्वयं या अन्य का कोई नुकसान नहीं हो तो कोई गलत नहीं ऐसी आदत में...
ReplyDeleteबिल्कुल राइट सर , जिस तरह की आदत पर आपका इशारा जा रहा हैं वो सही ही होगा क्योंकि , आपने सोच समझ के ही ये टिप्पणी दी हैं , सर इस पोस्ट पे तो वैसे ऐसी आदतें रखी गयी हैं जिनसे हम सबको नुकसान हैं खासतौर से युवा भाई बंधुओं को धन्यवाद व स्वागत हैं !
Deleteआपकि बहुत अच्छी राय है।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग सही दिशा मे जा रहा है।
ब्लॉग जगत मेँ नये तकनीकि हिन्दी ब्लॉग Hindi Computer Tips कि शुरुआत जरुर पधारे।
Hindi Computer Tips
आप हमारे युवा भाई है , बसंत भाई स्वागत है व सुंदर टिप्पणी हेतु धन्यवाद !
Deletebahut hi samvedansheel lekh ...aadat aisee ho jo maryada ko darkinar n kare ....thanks n aabhar .......
ReplyDeleteआ. निशा जी धन्यवाद व सद: ही स्वागत हैं !
Deleteसोचने के लिए कई प्रश्न.
ReplyDeleteधन्यवाद मैम , लेकिन हर प्रश्न का एक जवाब ज़रूर होता हैं , बस ज़रूरत हैं तो सिर्फ सही से ध्यान देने की , धन्यवाद व स्वागत हैं !
Deleteप्रश्न सोचने को बाध्य करते हैं |
ReplyDeleteआ. सोचने में हर्ज़ ही क्या हैं और बिना सोचे उत्तर दिया भी तो नहीं जा सकता हैं ! धन्यवाद व स्वागत हैं !
Deleteबहुत बढ़िया विचारणीय प्रस्तुति ..
ReplyDeleteकविता जी धन्यवाद व स्वागत हैं !
Deleteआदतें हमें गुलाम बनाती हैं सीमा में बांधती हैं..कभी कभी इनसे मुक्त होकर जीने की बात भी सोचनी चाहिए
ReplyDeleteअनीता जी धन्यवाद व स्वागत हैं !
Deleteअच्छा सवाल है। आदतें चाहे जैसी भी हों इन्सान के पास होंगी ही और होनी भी चाहिए। वो सही भी हो सकती हैं और गलत भी। और देखने वाले का नज़रिया भी महत्त्वपूर्ण है। स्वयं शून्य
ReplyDeleteसर धन्यवाद व स्वागत है !
Deleteअच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteप्रसून सर धन्यवाद व स्वागत है !
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
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ReplyDeleteअच्छा लिखा है मेरा भी देखे http://gyankablog.blogspot.com/
ReplyDeleteबहुत खूब। अच्छा लिखा।
ReplyDeleteजी धन्यवाद व सदा ही स्वागत है !
Deleteबहुत खूब। अच्छा लिखा।
ReplyDeleteबेहद उम्दा लिखा
ReplyDeleteबधाई ---
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों ---
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पोस्ट।
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