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Wednesday 23 April 2014

अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! - भाग - १

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अजी जीने की आदत तो समझ में आयी , मगर ये समझ में नहीं आया की ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये क्यों लिख दिया इस गाने में ? वैसे मैं कोई बुराई नहीं कर रहा हूँ गाने की , मेरा मतलब है कि क्या हम लोग इतने गैर व गुजरे हैं , कि हम लोगों को ' अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ! ' ये सुनना पड़ेगा , वो भी ऐसे देश में जहाँ की मिट्टी-मिट्टी में हमारे आदरणीय पूर्वजों ने जान लगा दी व हम लोगों को स्वतंत्र जिंदगी सम्मान सहित भेंट की - चलिए आगे बात करते हैं कि मैंने इस विषय पर पोस्ट लिखना उचित क्यों समझा -
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Saturday 19 April 2014

जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !

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जिंदगी हँसने गाने के लिए हैं पल दो पल - यही वो दो पल हैं जिनके लिए , बच्चा , युवा , वयस्क या वृद्ध कोई भी तमाम उम्र बड़े जतन के साथ लगे रहते है , ये जानते हुए भी की ये कुछ पल सिर्फ कुछ पल का ही मज़ा देते हैं , लेकिन ये पल क्या हैं ? , क्या एक दूसरे को गिरा के पलों का मज़ा लेना ( नीचा दिखाना ) , या सिर्फ अपने ही लिए पलों का मज़ा लेना ( स्वार्थ रखना ) , कहने को ये सिर्फ बातें हैं या ज़िन्दगी से सम्बंधित प्रश्न , लेकिन इसको हमको समझना ही पड़ेगा , क्योंकि बेदम ज़िन्दगी जीना हमारा काम नहीं - ये प्रश्न तब उठे जब मैं ये गीत सुन रहा था , ये गीत ज़मीर फ़िल्म का है , जिसके बोल हैं - जिंदगी हँसने गाने के लिए हैं पल दो पल - तो आज के प्रश्न इस गीत से सम्बंधित हैं - प्रश्न गीत के अंतरे से सम्बंधित हैं -
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Saturday 5 April 2014

साथी हाँथ बढ़ाना !

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साथी हाँथ बढ़ाना - ये एक सन्देश है ? या फिर सिर्फ एक गीत जो आज से कई दशक पहले लिखा गया था , कभी कभी सोंचता हूँ ये किस सोंच से लिखा गया होगा , क्योंकि आज हमारे युवा वर्ग को देख के ये बात कुछ जचती नहीं , क्योंकि आज के इस व्यस्त दौर में जहाँ हमारे युवा जन , राजनीति , फिल्मों , व खेलों में बढ़ चढ़ के भाग लेना चाहते है , वहाँ कि स्थति कुछ ठीक नहीं , क्योंकि हमें एक अच्छे सपोर्ट की ज़रुरत है , ठीक वहीँ हमसे पहले जो हमसे सीनियर है , वो ठीक हमें सपोर्ट देने के बजाए , हमारे मार्ग में अवरोध पैदा कर देते हैं , वो भी किस प्रकार का , कि क्या वह इस काम को कर पायेगा ? , क्वालिफिकेशन क्या है ? , क्या उम्र है ? , अभी बहुत छोटा है ? , इससे पहले कहीं काम-वाम किया है ?

इसमें सबसे बड़ा रिश्ता विश्वास का है , अगर हम अपने साथी पे विश्वास ही नहीं करेंगे , तो क्या वो आगे बढ़ पायेगा ? इन सब बातों से मेरा मतलब - कॉलेज रैगिंग व नौकरी के लिए इंटरव्यू से है ?
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Friday 4 April 2014

बच्चे मन के सच्चे

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जी हाँ बच्चे मन के सच्चे , बच्चालोगों की दुनिया से आप सब ही लगभग वाकिफ होंगे , लेकिन इनकी एक और भी दुनिया है , जिसे सच्चे मन की दुनिया कहते है , ये प्यारे व भोले बच्चे एक दीपक के सामान है , जैसे सिर्फ एक दीपक के वृहद प्रकाश से अन्धकार का नाश हो जाता है , ठीक उसी प्रकार हम अगर इनको सही दिशा देते है , तो वो हमारे आने वाले कल को शायद अच्छा व संतुलित मार्ग दे पाए , और इस अज्ञानता के फैले मार्ग में ज्ञान का प्रसार व प्रकाश फैला सकें -
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